गोचर सूत्र

कुंडली में लग्न से नवां भाव भाग्य स्थान होता है। भाग्य स्थान से नवां भाव अर्थात भाग्य का भी भाग्य स्थान पंचम भाव होता है। द्वितीय व एकादश धन को कण्ट्रोल करने वाले भाव होते हैं। तृतीय भाव पराक्रम का भाव है.अतः कुंडली में जब भी गोचरवश पंचम भाव से धनेश, लाभेश ,भाग्येश व पराक्रमेश का सम्बन्ध बनेगा वो ही समय आपके जीवन का शानदार समय बनकर आएगा।ये सम्बन्ध चाहे ग्रहों की यूति से बने चाहे आपसी
द्रष्टि से बने।

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