नाड़ी दोष
हम कुंडली मिलान जब करते है उसमें एक चीज़ का मिलान होता है जिसको कहते है नाड़ी मिलाना नाड़ी दोष क्या होता है और यह क्यों मिलाया जाता है
में इस चीज़ पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश करता हूँ
दोस्तों कुंडली में कभी भी जब मिलान होता है किसी की भी एक नाड़ी नहीं होनी चाहिए
कुछ लोगो का यह अन्धविश्वास है कि नाड़ी दोष बस ब्राह्मणों को लगता है बाकी किसी को नहीं
में इस पर प्रकाश डालता हूँ
नाड़ी तीन प्रकार की होती है
अध्य मध्य अंत्य
यह सब नक्षत्रो से संचालित होती है आपकी नाड़ी
कुंडली मिलान में इसके 8 अंक मिलते है
हमारे ऋषि मुनि कहते है अगर कुंडली में 28 गुण भी मिल रहे हो और नाड़ी दोष नहीं कट रहा हो तो शादी नहीं करनी चाहिए क्योंकि नाड़ी दोष होने पर स्वास्थ्य से सम्बंधित परेशांनी बहुत आती है
और अगर नक्षत्र भी पीड़ित हो तो ज़िन्दगी भी दाव पर लग सकती है
पर अब सवाल यह है कि नाड़ी दोष क्या ब्राह्मणों को ही क्यों लगता है क्या यह किसी जाति पर निर्भर दोष है
दोस्तों कर्क राशि मीन राशि विरिश्चिक राशि इन राशि को ब्राह्मण राशि कहते है
यह राशि सबसे ज्यादा नाड़ी दोष से प्रभावित होती है इसका कारण है यह राशि ब्राह्मण राशि है हमारे ऋषि मुनि जाति की नहीं इन राशि की बात करते है कि इन 3 राशि को नाड़ी दोष ज्यादा लगता है अगर वर और वधु की एक राशि हो और यह दोष नहीं कट रहा हो तो
इसका कारण यह है कि यह 3 राशि जलतत्व राशि है और हमारे शरीर में 80% पानी है
हमारे शरीर में जो भी बीमारी लगती है वो पानी की वजह से ही ज्यादा लगती है पति पत्नी में सम्बन्ध होने के बाद और दोनों की एक ही नाड़ी होने की वजह से इनको बीमारी जल्दी ही पकड़ लेती है
और नाडी दोष को खून का रिश्ता भी कहा जाता है दोनों में एक जैसा सम्बन्ध होने की वजह से हमारे ऋषि मुनि ने नाड़ी दोष में शादी करना सही नहीं माना है
जिस तरह से एक ही गोत्र में शादी नहीं होती क्योकि वो खून का रिश्ता होता है
इस प्रकार एक ही नाड़ी होने पर शादी नहीं करनी चाहिए
यहाँ भी वो सम्बन्ध की बात कर रहे है
जल तत्व राशि बीमारी को जल्दी पकड़ लेती है
इसलिए हमारे ऋषि मुनि कहते है जलतत्व राशि ब्राह्मण वर्ण राशि को नाड़ी दोष ज्यादा लगता है और राशि के मुकाबले
अगर वर और वधु की राशि एक ही हो और नक्षत्र अलग अलग हो तब नाड़ी दोष कट जाता है
और शादी हो सकती है
अगर नक्षत्र एक ही हो पर राशि अलग अलग हो तब भी नाड़ी दोष कट जाता है
और शादी हो सकती है
अशिवनी
आद्रा
पुनर्वसु
हस्त
जयेष्ठ
मूल
उत्तराफाल्गुनी
शतभिषा
पुरावफाल्गुनी
यह नक्षत्र आदि नाड़ी है
भरणी
पुष्य
मृगशिरा
पुरावफाल्गुनी
चित्र
पूर्वशन
घनिष्ठा
अनुराधा
उत्रभद्रपाद। मद्य्या। नाड़ी है
कृतिका
अशेलेश
मघा
रोहिणी
स्वाति
विशाखा
रेवती
श्रवण
अंत्य नाड़ी है।
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