वैदिक ज्योतिष विचार विमर्श ★

भाग 3(फलित खंड)★
फलित के सिद्धांत ★
ग्रहों की स्थिति और दृष्टि विचार ★

न 1:- कोई गृह या भाव यदि शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो इसके कारकत्व को बेहतर बनाता हैं यदि एक अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो  इसमें गिरावट आती हैं।

न 2:-एक भाव में यदि उस भाव का स्वामी ग्रह स्थित हो या बह उस अपने भाव को देख रहा हो तो(गृह चाहे शुभ हो या अशुभ हो )भाव को शुभ प्रभाव देने हेतु बल प्राप्त  करता हैं।

न3 :-किसी भाव में  यदि एक अशुभ ग्रह स्थित हो या दृष्ट हो तो बुरा हो जाता हैं।   

न4:-किसी भाव में एक अशुभ ग्रह बैठा हो और बह एक शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो (या इसके विपरीत स्थिति हो )तो दूषित ,(माध्यम गुण प्राप्त )करता हैं।अशुभ ग्रह की अशुभता कम हो जाती हैं और शुभ ग्रह की शुभता में कमी आ जाती हैं।। 

न 5:-तीसरे ,छटवें ,या ग्यारहवें भाव में  अशुभ ग्रह भी  शुभ फल देते हैं ,और यदि वो इन भावों के स्वामी भी हों  तो अधिक शुभ  हो जाते हैं।

न 6 :-एक गृह केंद्र,त्रिकोण,ग्यारहवे भाव में  अपनी राशि ,उच्च राशि में,मित्र की राशि में,शुभ है बाकी शेष  3/6/8/12में अशुभ हैं। 2रे भाव में गृह सम होता हैं। 

न 7:-छटवे ,आठवे,या बारहवे भाव के स्वामियों से दृष्ट निर्बली और पीड़ित हो जाते हैं।

न8 :-सभी गृह छठे,आठवे,और बारहवें भाव में स्थित होने पर अशुभ एवं निर्बल हो जाते हैं।

न9 :-आठवां ,तीसरा,बारहवां और छटा भाव क्रमशः घटते क्रम में  अशुभ होते है ।अर्थात आठवे से कम तीसरा,तीसरा से कम बारहवां,बारहवे से कम छटवां भाव इस क्रम में अशुभ होते हैं।।  

★त्रिक स्थान के स्वामी ग्रह
★ट्रिक स्थान छटवे,आठवे, और बारहवे स्थान के स्वामी शुभ  हो जाते हैं यदि ------

न1:- ये गृह स्थान बलि हों।

न2:-या दो शुभ ग्रहों के मध्य (शुभ कर्तरीयोग) में बैठे हों। या 

न 3:-पंचमेश या नवमेश की युति /दृष्टि में हों।। या

न 4 :-वर्गों में श्रेष्ठ स्थितियों में हों।

न 10 :- अशुभ भावो के स्वामी अर्थात तृतीयेश,षष्टेश, अष्टमेश और द्वादशेश यदि अशुभ भावो में ही बैठे हों तो
★बिपरीत राजयोग

★के कारण  शुभ हो जाते हैं। 

न 11 :-छटवां भाव ट्रिक और उपचय दोनों  प्रकार का हैं यदि इसको अशुभ ग्रह प्रभावित करते हैं तो यह त्रिक बन जाता हैं।यदि शुभ ग्रह   प्रभावित करते हैं तो उपच्चय बन जाता हैं और भाव को बेहतर  बनाते हैं।। 

न 12 :- एक गृह चाहे छटवे ,आठवे,या बारहवे भाव में ही क्यों ना  बैठा हो यदि बह अपनी राशि  या उच्च राशि में बैठकर बलि शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो शुभ हो जाता हैं।  कुछ अन्य टिप्पणी :-

न 1:-एक अस्त या गृह युद्ध में पराजित गृह अशुभ होता हैं।।

न 2:-एक नीच का गृह यदि बक्री ना हो तो अशुभ होता हैं।  

न 3:-कारक ग्रह की स्थिति का भी विचार किया जाना चाहिए।भावेश/कारक यदि आठवे भाव में हो तो अपने स्वामित्व वाले भावों के लिए अशुभता लाता हैं।।

न4 :-बुद्ध और शनि को छोड़कर आठवे भाव में सभी गृह अशुभ हैं। आठवे भाव में बैठा हुआ बुद्ध  सौभाग्य और शनि दीर्घायु देता हैं

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