माघ मास की अंतिम 3 तिथियाँ दिलाएं महापुण्य पुंज गुरु पुष्यामृत योग *09 फरवरी 2017 गुरुवार को  (सुबह 10:48 से 10 फरवरी सूर्योदय तक)

माघ मास की अंतिम 3 तिथियाँ दिलाएं महापुण्य पुंज

9-10 फरवरी, 2017

दिनत्रय व्रत

त्रयोदशी से पूर्णिमा तक स्नान, दान, व्रतादि पुण्यकर्म करने से सम्पूर्ण माघ स्नान का फल मिलता है । (पद्म पुराण)*

माघ मास का इतना प्रभाव है कि इसकी हर तिथि पुण्यमय होती है और इसमें सब जल गंगाजल तुल्य हो जाते हैं । सतयुग में तपस्या से जो उत्तम फल होता था, त्रेता में ज्ञान के द्वारा, द्वापर में भगवान की पूजा के द्वारा और कलियुग में दान-स्नान के द्वारा तथा द्वापर, त्रेता, सतयुग में पुष्कर, कुरुक्षेत्र, काशी, प्रयाग में 10 वर्ष शुद्धि, संतोष आदि नियमों का पालन करने से जो फल मिलता है, वह कलियुग में माघ मास में, जो सभी में श्रेष्ठ है, अंतिम ३ दिन (त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा) प्रातःस्नान करने से मिल जाता है ।

पूरे माघ मास स्नान करने का सामथ्र्य व अनुकूलता न होने पर त्रयोदशी से पूर्णिमा तक स्नान, दान, व्रतादि पुण्यकर्म करने से सम्पूर्ण माघस्नान का फल मिलता है । (पद्म राण)

माघ मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम ३ तिथियाँ, त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ बडी ही पवित्र और शुभकारक हैं । जो सम्पूर्ण माघ मास में ब्रह्म मुहूर्त में पुण्य स्नान, व्रत, नियम आदि करने में असमर्थ हो, वह यदि इन 3 तिथियों में भी उसे करे तो  माघ मास का पूरा फल पा लेता है । 

*जो माघ मास की अंतिम ३ तिथियों में गीता, श्री विष्णु सहस्त्रनाम, भागवत शास्त्र का पठन व श्रवण करता है वह महा पुण्यवान हो जाता है । -

         

गुरु पुष्यामृत योग

*09 फरवरी 2017 गुरुवार को  (सुबह 10:48 से 10 फरवरी सूर्योदय तक)*

*‘शिव पुराण’ में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है | पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट-से-अनिष्टकर दोष भी समाप्त और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं | ‘सर्वसिद्धिकर: पुष्य: |’ इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है | पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है |*

*देवगुरु बृहस्पति ग्रह का उद्भव पुष्य नक्षत्र से हुआ था, अत: पुष्य व बृहस्पति का अभिन्न संबंध है | पुष्टिप्रदायक पुष्य नक्षत्र का वारों में श्रेष्ठ बृहस्पतिवार (गुरुवार) से योग होने पर वह अति दुर्लभ ‘गुरुपुष्यामृत योग’ कहलाता है |*
*गुरौ पुष्यसमायोगे सिद्धयोग: प्रकीर्तित: |*
*शुभ, मांगलिक कर्मों के संपादनार्थ गुरु-पुष्यामृत योग वरदान सिद्ध होता है |*
*इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं |*
         

*कैसे बदले दुर्भाग्य को सौभाग्य में*
*बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें |*

*पुष्य नक्षत्र योग*
*१०८ मोती की माला लेकर जो गुरुमंत्र का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उसपर खुश होते है और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी है देवगुरु ब्रहस्पति | पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है | उस दिन ब्रहस्पति का पूजन करना चाहिये | ब्रहस्पति को तो हमने देखा नहीं तो सद्गुरु को ही देखकर उनका पूजन करें और मन ही मन ये मंत्र बोले –*
🌷 *ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये  नम : |...... ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये   नमः

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