क्या विभीषण भगवान श्रीराम क़े बड़े भाई थे ?
क्या विभीषण श्रीराम के बड़े भाई थे ? रक्ष- संस्कृति का महानायक रावण को पता था कि राजा राजा दशरथ और कौशल्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र के हाथो से उसका नाश होगा | इसलिए रावण दशरथ से प्रत्यक्ष रूप से न लड़कर छल से आक्रमण करना चाहता था | कहा जाता है कि वह दशरथ और कौशलया को मारकर निष्कंटक राज्य करना चाहता था | इस योजना के तहत रावण ने कौशलया का अपहरण भी किया था , परन्तु वह इस कार्य में सफल नहीं हुआ और कौशलया पुनः अयोध्या वापस आ गयी | दशरथ की घेराबंदी की पीछे यही कारण था | एक प्रख्यात जनश्रुति की अनुसार रावण ने लंका कि ' सुबक्षा ' नाम कि मायाविनी राक्षसी को फुसलाकर कहा कि एक रूपवती युवती बनकर राजा दशरथ क़े पास जाए और अपनी सुंदरता क़े मोहपाश में दशरथ को फंसाकर निःवीर्य बना दे | सुबक्षा वहां गयी , राजा दशरथ शिकार खेलने जंगल में आये थे , तब दोनों कि भेंट हुई | सुबक्षा कि मोहनी रूप क़े मोहजाल में दशरथ जी फंस गए | दोनों में शारीरिक सबंध हुआ और नियत योजना क़े महत उस मायाविनी सुबक्षा ने दशरथ कि समस्त ऊर्जा को शोषित कर उन्हें निःवीर्य बना दिया | परन्तु सुबक्षा स्वयं गर्भवती हो गयी और विभीषण और त्रिजटा का जन्म हुआ | इस हैसियत से विभीषण श्रीराम क़े बड़े भाई और त्रिजटा बड़ी बहन हुई | दशरथ कि बड़ी बेटी होने क़े कारण ही सीता ने भी त्रिजटा को माँ कहा है | प्रमाण क़े लिए ' सुन्दरकाण्ड का यह प्रसंग देखिए -- " त्रिजटा संग बोली कर जोरी | मातु विपति संगिनी हैं मोरी ||" विभीषण श्रीराम क़े बड़े भाई थे , इसका संकेत भक्त शिरोमणि तुलसीदास भी रामचरित मानस क़े " सुन्दरकाण्ड " में विभीषण क़े कथन से देते हैं | विभीषण राम कि शरण में आते ही अपना परिचय इस प्रकार देते हैं |-- "नाथ दसानन कर मैं भ्राता | निसचर वंस जनम सुरत्राता ||"'हे प्रभु श्रीराम ! मैं रावण का भाई और निशिचर वंश में पैदा हुआ हूँ |' आचार्य श्री सुदर्शन जी महाराज तुलसीदास क़े इस कथन क़े आधार पर बताते हैं कि ' निशिचर' क़े दो अर्थ होते हैं | निशि में चलने वाला अर्थात ' राक्षस ' और निशि क़े चर( खानेवाला )जाने वाला अर्थात ' सूर्य ' | सूर्य रात्रि को खा जाता है | इसलिए तुलसीदास क़े संकेत - सूत्र क़े अनुसार भी विभीषण सूर्यवंश में जन्म लेने वाला राम का बड़ा भाई था | इसलिए राम अपना राजतिलक छोरकर अपने बड़े भाई विभीषण को लंका का राजतिलक करवाकर छोटे भाई का कर्त्तव्य पूरा करना चाहते थे | इस प्रसंग को " मानस मयंक " टीकाकार क़े कथन से भी पुष्टि होती है | कृपया " मानस मयंक " देखें | श्रीतुलसीदास भी 'सुन्दरकाण्ड' में लिखते हैं --- " एवमस्तु कही प्रभु रनधीरा | मागा तुरत सिंधु कर नीरा || जदपि सखा तव इच्छा नाही | मोर दरसु अमोध जग माहीं || अस कहीं राम तिलक तेहि सारा | सुमन बृटि नभ भई अपारा || " यहाँ भी विभीषण क़े बड़े भाई होने का संकेत मिलता है | श्रीराम ने सागर का जल मंगवाकर अपने बड़े भाई विभीषण का राज्याभिषेक किया | परम्परा क़े अनुसार बड़े भाई क़े रहते छोटे भाई का राजतिलक नही होता है | इसलिए श्रीराम का राजतिलक अधूरा रहा | अतः आचार्य श्री सुदर्शन जी महाराज का यह रहस्मय कथा कि विभीषण श्रीराम क़े बड़े भाई थे --मार्मिक ,शास्त्रसम्मत एवं महाकवि भक्त शिरोमणि तुलसीदास द्वारा काव्यानुमोदित है |
0 Comments