गजकेशरी योग

गजकेशरी योग

मेष लग्न  :-
मेष लग्न की कुण्डली में गुरू नवमेश/द्वादेश तथा चन्द्र सुखेश होकर गजकेशरी योग बनाता है
इस लग्न में गुरू व चन्द्र, दोनो योगकारक होते हैं. इनकी युति शुभ फलदायी होती है. इस लग्न में इन दोनों ग्रहों की सबसे शुभ स्थिति चतुर्थ भाव में होती है. द्वितीय एवं पंचम में भी गुरू चन्द्र की युति शुभकारी मानी जाती है।

वृष लग्न  :-
वृष लग्न की कुण्डली में गुरू लाभेश/अष्टमेश तथा चन्द्र पराक्रमेश होकर गजकेशरी योग बनाता है सामान्यत: वृष लग्न की कुण्डली में गजकेशरी योग उचित लाभ नही दे पाता।

मिथुन लग्न :-
मिथुन लग्न की कुण्डली में गुरू सप्तमेश/दशमेश तथा चन्द्र धनेश होकर गजकेशरी योग बनाता है. इस लग्न में गुरू को केन्द्रेश होने का दोष लगता है परंतु गुरू यदि धनु राशि में होता है तो धनेश चन्द्र के साथ मिलकर गजकेशरी योग का  फल देता है क्योंकि त्रिकोण राशि में होने से गुरू का केन्द्राधिपति व सप्तमाधिपति दोष प्रभावहीन हो जाता है।

कर्क  लग्न :-
कर्क लग्न की कुण्डली में गुरू रोगेश/अष्टमेश तथा चन्द्र लग्नेश होकर गजकेशरी योग बनाता है अगर लग्न का स्वामी चन्द्रमा लग्न में बैठा हो और गुरू मेष में स्थित हो या फिर गुरू कर्क में हो और चन्द्र मेष में तब भी उत्तम गजकेशरी योग बनता है जो व्यक्ति के लिए शुभ फलदायी होता है।

सिंह लग्न :-
सिंह लग्न की कुण्डली में गुरू पंचमेश/अष्टमेश तथा चन्द्र द्वादेश होकर गजकेशरी योग बनाता है परंतु इस लग्न मे यह योग  तब फलित होता है जब गुरू मीन राशि में बैठा हो और चन्द्रमा धनु राशि में बैठा हो. अन्य स्थितियों में इस योग के फलों में कमी आती है।

कन्या लग्न :-
कन्या लग्न की कुण्डली में गुरू केन्द्रेश व चन्द्र लाभेश होकर गजकेशरी योग बनाता है परंतु इस लग्न मे यह योग  तब फलित होता है जब गुरू अपनी राशि में बैठा होता है क्योकि ऐसी अवस्था मे गुरू  केन्द्राधिपति दोष से मुक्त हो जाता है इस स्थिति में गुरू अगर मीन राशि में हो तथा चन्द्रमा धनु या मीन में बैठा हो तो इसे शुभ फलदायी गजकेशरी योग माना जाता है.

तुला लग्न :-
तुला लग्न की कुण्डली गुरु पराक्रमेश/रोगेश तथा चन्द्र दशमेश होकर गजकेशरी योग बनाता है. अत: इस लग्न मे गजकेशरी योग का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है फिर भी यदि गुरू कर्क राशि में  व चन्द्रमा मकर राशि में तो कुछ हद तक शुभ फल की उम्मीद की जा सकती है. लेकिन इसमें एक अच्छी बात यह होती है कि  गुरू चन्द्र की इस स्थिति से हंस योग बनता है जिनका इन्हें अत्यंत शुभ फल मिलता है।

वृश्चिक लग्न :-
वृश्चिक लग्न की कुण्डली में गुरू पंचमेश/धनेश तथा चन्द्र नवमेश होकर गजकेशरी योग बनाता है. गुरू,यदि कुण्डली में लग्न में हो और चन्द्रमा सातवें घर में वृष राशि में तो दोनों के बीच दृष्टि सम्बन्ध बनता है जिससे यह योग बहुत ही शुभकारी होता है।

धनु लग्न :-
धनु लग्न की कुण्डली में गुरू लग्नेश/सुखेश तथा चन्द्र अष्टमेश होकर गजकेशरी योग बनाता है. अत: इस लग्न में चन्द्र के अष्टमेश होने के कारण गजकेशरी योग का पूर्ण फल नहीं मिलता. लेकिन गुरू अगर वृश्चिक राशि में हो और चन्द्रमा वृष राशि में तो इस योग का शुभ फल मिल सकता है।

मकर लग्न :-
मकर लग्न की कुण्डली में गुरू पराक्रमेश/द्वादेश तथा चन्द्र सप्तमेश होकर गजकेशरी योग बनाता है. अत: मकर लग्न की कुण्डली में गजकेशरी योग सामान्य फलदायी होता है।

कुम्भ लग्न :-
कुम्भ लग्न की कुण्डली में गुरू लाभेश/धनेश तथा चन्द्र रोगेश होकर गजकेशरी योग बनाता है
अत: कुम्भ लग्न की कुण्डली में भी गजकेशरी योग सामान्य फलदायी होता।

मीन लग्न :-
मीन लग्न की कुण्डली में गुरू लग्नेश/दशमेश तथा चन्द्र पंचमेश होकर गजकेशरी योग बनाता है. अत: मीन लग्न की कुण्डली गुरू की ही राशि में गजकेशरी योग बने तो बहुत ही शुभकारी होता है।

अत: सभी लग्नों में मिथुन, कन्या, वृश्चिक एवं मीन लग्न में बनने वाला गजकेशरी योग सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। अन्य लग्नों में इसका प्रभाव इनकी अपेक्षा कम होता है।

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