कुछ खास योग

दुःख योग

 

चौथे स्थान का स्वामी पापग्रह से युक्त हो | 

चौथे घर मे नीच का सूर्य व मंगल हो | 

आठवें घर का स्वामी ११वें भाव मे हो | 

लग्न मे पापग्रह के बीच मे हो | 

लग्न मे शनि, आठवें स्थान पर राहु तथा छठे स्थान पर मंगल हो | 

चन्द्रमा पापग्रहों के बीच मे हो | 

लग्न का स्वामी १२वें स्थान पर, दसवे स्थान पर पापग्रह और किसी भी घर मे चन्द्रमा तथा सूर्य साथ मे

मकान बनाने के योग

 

एक अच्छा घर बनाने की इच्छा हर व्यक्ति के जीवन की चाह होती है. व्यक्ति किसी ना किसी तरह से जोड़-तोड़ कर के घर बनाने के लिए प्रयास करता ही है. कुछ ऎसे व्यक्ति भी होते हैं जो जीवन भर प्रयास करते हैं लेकिन किन्हीं कारणो से अपना घर फिर भी नहीं बना पाते हैं. कुछ ऎसे भी होते हैं जिन्हें संपत्ति विरासत में मिलती है और वह स्वयं कुछ भी नहीं करते हैं. बहुत से अपनी मेहनत से एक से अधिक संपत्ति बनाने में कामयाब हो जाते हैं. जन्म कुंडली के ऎसे कौन से योग हैं जो मकान अथवा भूमि अर्जित करने में सहायक होते हैं, उनके बारे में आज इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेगें. 

स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है, तभी व्यक्ति घर बना पाता है. 

मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है, इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए. 

मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है. 

मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है. 

मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है. इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है. 

चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव घर का सुख देता है. 

चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर पाप व अशुभ ग्रहो का प्रभाव घर के सुख में कमी देता है और व्यक्ति अपना घर नही बना पाता है. 

चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं. एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं. 

यदि चतुर्थेश, एकादश भाव में स्थित हो तब व्यक्ति की आजीविका का संबंध भूमि से बनता है. 

कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं. 

जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं. 

चतुर्थ, अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं. 

चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है. 

जो योग जन्म कुंडली में दिखते हैं वही योग बली अवस्था में नवांश में भी मौजूद होने चाहिए. 

भूमि से संबंधित सभी योग चतुर्थांश कुंडली में भी मिलने आवश्यक हैं. 

चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश, चतुर्थ भाव/चतुर्थेश व मंगल की स्थिति का आंकलन करना चाहिए. यदि यह सब बली हैं तब व्यक्ति मकान बनाने में सफल रहता है. 

मकान अथवा भूमि से संबंधित सभी योगो का आंकलन जन्म कुंडली, नवांश कुंडली व चतुर्थांश कुंडली में भी देखा जाता है. यदि तीनों में ही बली योग हैं तब बिना किसी के रुकावटों के घर बन जाता है. जितने बली योग होगें उतना अच्छा घर और योग जितने कमजोर होते जाएंगे, घर बनाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. 

जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव आ रहा हो तब व्यक्ति घर के सुख से वंचित रह सकता है. उसका अपना घर होते भी उसमें नही रह पाएगा अथवा जीवन में एक स्थान पर टिक कर नही रह पाएगा. बहुत ज्यादा घर बदल सकता है. 

चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को जमीन से संबंधित कोर्ट-केस आदि का सामना भी करना पड़ सकता है. 

वर्तमान समय में चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बनने पर व्यक्ति बैंक से लोन लेकर या किसी अन्य स्थान से लोन लेकर घर बनाता है. 

चतुर्थ भाव का संबंध यदि दूसरे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपनी माता की ओर से भूमि लाभ होता है. 

चतुर्थ का संबंध नवम से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपने पिता से भूमि लाभ हो सकता है.

सिंहासन योग

 

दशमेश के केन्द्र, त्रिकोण, अथवा धन भाव में स्थित होने से निर्मित होता है सिंहासन योग. जन्म कुण्डली में दशम भावाधीश केन्द्र, त्रिकोण अथवा द्वितीय इनमें से किसी एक स्थान पर भी स्थित हो तो ऎसा जातक उच्च स्थान पाता है. वह राज सिंहासन पर सुशोभित होने वाला राजा समान होता है, उसकी कीर्ति सभी ओर फैलती है तथा उसकी सेना हाथी इत्यादि सदैव परिपूर्ण रहती है. 

दशमभवननाथे केन्द्रकोणे धनस्थे ।
वनिपतिबलयाने शस्तसिंहासनेषु ।।

स भवति नरनाथो विश्वविख्यात कीर्ति।
मर्दगलितकपोलै: सद् गजै: सेव्यमान: 

दशमेश यदि केन्द्र, त्रिकोण या धन भाव में से किसी में भी स्थित होने पर जातक समृद्धशाली, यशस्वी और कीर्तिवान बन सकता है. व्यक्ति को जीवन में उच्च पद की प्राप्ति होती है तथा सौभाग्य में वृद्धि पाता है. दशमेश की शुभ स्थिति होने पर कर्म स्थान बल पाता है. 

द्वितीय प्रकार का सिंहासन योग 

सातों ग्रहों के द्वितीय भाव तथा त्रिक भावों में स्थित होने से यह बनता है. द्वितीय, अष्टम, षष्ठ और व्यय में सब ग्रह हों तो व्यक्ति की कुण्डली में सिंहासन योग का निर्माण होता है. 

आकाशवासै: सकलैर्निधाननिमीलनाराह्यवसानयातै:।
वदन्ति सिंहासन नामयोगं सिंहासनं तत्र विशेन्नृपस्य।। 

ज्योतिष में सिंहासन योग का निर्माण हो तो शुभ प्रभाव जातक को अच्छी क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की क्षमता, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा देने वाला होता है. अधिकतर जातक इस योग से मिलने वाले शुभ फलों को प्राप्त करते हैं यह जातक के जीवन को प्रभावशाली स्वरुप प्रदान करने में सहायक है. इस योग के द्वारा प्रदान होने वाली विशेषताएं कुछ विशेष जातकों में ही देखने को मिलती हैं. कुंडली में इस योग का निर्माण निश्चित करने के लिए कुछ अन्य तथ्यों के विषय में विचार कर लेना भी आवश्यक है. किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं.

अरिष्ट भंग योग

 

वर्षलग्नेश पंचवर्गी में सबसे अधिक बलवान होकर एक, चार, पांच, सात, नौवें या दसवें भाव में हों, तो अरिष्टनाशक योग होता है |

ब्रहस्पति केंद्र (१, ४, ७, १०) या त्रिकोण (५, ९) में शुभग्रहों से द्रष्ट हो व उस पर पापग्रहों की दृष्टि न हो, तो अरिष्टनिवारक योग होता है | 

चतुर्थ भाव अपने स्वामी के साथ या शुभग्रह के साथ अथवा उससे दृष्ट हो, तो भी अनिष्टनाशक योग होकर धन, दुःख और सम्मान कि वृद्धि करता है | 

सप्तमेश लग्न में ब्रहस्पति के साथ हो और क्रूरग्रह उसे न देखते हों, तो ऐसा योग अरिष्टनिवारक योग कहलाता है | 

नवम घर का स्वामी तथा दुसरे घर का स्वामी बलवान होकर लग्न में हों तथा उन पर पापग्रहों की दृष्टि न हो, तो जातक राज्य में सम्मान प्राप्त करता है | 

तीसरे, छठें, तथा ग्यारहवें स्थानों में पापग्रह एवं केन्द्र तथा त्रिकोण में शुभग्रह होते हैं, तो अरिष्टनिवारक योग बनता है | 

लग्नेश पूर्णबली होकर केन्द्र, त्रिकोण या ११, १२वें स्थान में हो, तो जातक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं | 

उच्च राशि का स्वामी बलवान होकर वर्षेश हो तथा वह तीसरे व ग्यारहवें भाग में स्थित हो, तो अरिष्टनिवारक योग होता है | 

सूर्य, ब्रहस्पति, तथा शुक्र परस्पर इत्थशाल योग करते हों, तो उस वर्ष जातक को नौकरी में प्रमोशन मिलता है | 

शुक्र, बुध और चन्द्रमा अपनी मुधा में हों, तो जातक व्यापर से लाभ उठता है | 

मंगल वर्षेश होकर मित्र की र्शी में हो और घर में पड़े ग्रह से मुत्थशिल योग करता है, तो उस वर्ष जातक को उच्च वाहन मिलता है |

: अमावस्या योग

 

जब सूर्य और चन्द्रमा दोनों कुण्डली के एक ही घर में विराजित हो जावे तब इस दोष का निर्माण होता है। जैसे की आप सब जानते है की अमावस्या को चन्द्रमा किसी को दिखाई नही देता उसका प्रभाव क्षीण हो जाता है। ठीक उसी प्रकार किसी जातक की कुंडली में यह दोष बन रहा हो तो उसका चन्द्रमा प्रभावशाली नही रहता। और चन्द्रमा को ज्योतिष में कुण्डली का प्राण माना जाता है और जब चन्द्रमा ही प्रभाव हीन हो जाए तो यह किसी भी जातक के लिए कष्टकारी हो जाता है क्योंकि यही हमारे मन और मस्तिष्क का कारक ग्रह है। इसलिए अमावस्या दोष को महर्षि पराशर जी ने बहुत बुरे योगो में से एक माना है, जिसकी व्याख्या उन्होंने अपने ग्रन्थ बृहत पराशर होराशास्त्र में बड़े विस्तार से की है तथा उसके उपाय बताये है। । ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि सूर्य और चन्द्र दो भिन्न तत्व के ग्रह है सूर्य अग्नि तत्व और चन्द्र जल तत्त्व, इस प्रकार जब दोनों मिल जाते है तो वाष्प बन जाती है कुछ भी शेष नही रह जात

महाभाग्य योग

 

वैदिक ज्योतिष में वर्णित अधिकतर योगों का निर्माण पुरुष तथा स्त्री जातकों की कुंडलियों में एक समान नियमों से ही होता है जबकि महाभाग्य योग के लिए ये नियम पुरुष तथा स्त्री जातकों के लिए विपरीत हैं। इसका कारण यह है कि सूर्य दिन में प्रबल रहने वाला पुरुष ग्रह है तथा चन्द्रमा रात्रि में प्रबल रहने वाला एक स्त्री ग्रह है और किसी पुरुष की कुंडली में दिन के समय का जन्म होने से, लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा सबके विषम राशियों में अर्थात पुरुष राशियों में स्थित हो जाने से कुंडली में पुरुषत्व की प्रधानता बहुत बढ़ जाती है तथा ऐसी कुंडली में सूर्य भी बहुत प्रबल हो जाते हैं जिसके कारण पुरुष जातक को लाभ मिलता है। वहीं पर किसी स्त्री जातक का जन्म रात में होने से, कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों के विषम राशियों अर्थात स्त्री राशियों में होने से कुंडली में चन्द्रमा तथा स्त्री तत्व का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है जिसके कारण ऐसे स्त्री जातकों को लाभ प्राप्त होता है। 

किन्तु महाभाग्य योग का फल केवल उपर दिये गए नियमों से ही निश्चित कर लेना उचित नहीं है तथा किसी कुंडली में इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में विचार कर लेना भी अति आवश्यक है। किसी भी कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों का शुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि इन दोनों में से किसी एक ग्रह के अशुभ होने की स्थिति में महाभाग्य योग या तो कुंडली में बनेगा ही नहीं अन्यथा ऐसे महाभाग्य योग का बल बहुत क्षीण होगा जिससे जातक को अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो पायेगा जबकि इन दोनों ही ग्रहों के किसी कुंडली में अशुभ होने की स्थिति में ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बिल्कुल भी नहीं बनेगा बल्कि ऐसी स्थिति में कुंडली में कोई अशुभ योग भी बन सकता है जिसके चलते जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि कई बार किसी कुंडली में ऐसे अशुभ सूर्य तथा चन्द्रमा का संयोग होने पर भी जातक बहुत धन कमा सकता है अथवा किसी सरकारी संस्था में कोई शक्तिशाली पद भी प्राप्त कर सकता है किन्तु ऐसा जातक सामान्यतया अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाता है तथा अपने पद और शक्ति का धन कमाने के लिए दुरुपयोग करता है जिसके कारण ऐसे जातक का पद तथा धन स्थायी नहीं रह पाता तथा उसे अपने पद तथा धन से हाथ धोना पड़ सकता है तथा अपयश अथवा बदनामी का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा का शुभ होना अति आवश्यक है।

दरिद्र योग

 

वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है जो जातक के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है। वहीं पर कुछ अन्य वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अनैतिक तथा अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाते हैं जिसके कारण इन जातकों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता तथा ऐसे जातक अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुंचाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते। 

दरिद्र योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यह योग प्रत्येक चौथी कुंडली में बनता है क्योंकि कुंडली के 11वें घर के स्वामी ग्रह की किसी कुंडली के बारह में से किन्हीं तीन विशेष घरों में स्थित होने की संभावना प्रत्येक चौथी कुंडली में रहती है। इस प्रकार संसार के प्रत्येक चौथे व्यक्ति की कुंडली में दरिद्र योग बनता है तथा संसार का हर चौथा व्यक्ति दरिद्र योग के अशुभ प्रभाव के कारण अति निर्धन अथवा अपराधी होता है। यह तथ्य वास्तविकता से पर है तथा इसीलिए दरिद्र योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इस योग का निर्माण नहीं होना चाहिए। मैने अपने अनुभव में यह पाया है कि यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह अशुभ होकर कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में बैठ जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग का निर्माण हो सकता है तथा 11वें घर के स्वामी ग्रह के कुंडली में शुभ होकर 6, 8 अथवा 12वें घर में से किसी घर में बैठ जाने पर कुंडली में दरिद्र योग का निर्माण नहीं होता बल्कि ऐसा शुभ ग्रह कुंडली के इन घरों में स्थित होकर कोई शुभ योग भी बना सकता है। कुंडली में 11वें घर के स्वामी ग्रह पर अन्य अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कुंडली में बनने वाला दरिद्र योग और भी अधिक अशुभ फलदायी हो जाता है। 

उदाहरण के लिए अशुभ बृहस्पति यदि किसी कुंडली में 11वें घर के स्वामी होकर 8वें घर में स्थित हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में कुंडली में दरिद्र योग का निर्माण हो सकता है जिसके चलते इस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक निर्धन, अति निर्धन, चोर, ठग, जेबकतरे तथा धन कमाने के लिए किसी न किसी प्रकार का धोखा करने वाले हो सकते हैं। किन्तु उपरोक्त उदाहरण में कुंडली के इसी 8वें घर में बैठा बृहस्पति यदि शुभ हो तो कुंडली में दरिद्र योग नहीं बनेगा तथा ऐसा जातक ज्योतिषी, आध्यात्मिक गुरु, आध्यात्मिक प्रवक्ता, योगाचार्य, हस्त रेखा विशषज्ञ, जादूगर, बैंक अधिकारी अथवा वित्तिय सलाहकार आदि बन सकता है। कुंडली के आठवें घर में स्थित इस प्रकार का शुभ बृहस्पति जातक को लाटरी, उत्तराधिकार, वसीयत अथवा अन्य कई प्रकार के अचानक हो जाने वाले धन लाभ भी प्रदान कर सकता है। इसलिए किसी कुंडली में दरिद्र योग के बनने या न बनने का निर्णय लेने के लिए कुंडली के 11वें घर के स्वामी ग्रह का स्वभाव तथा कुंडली के अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जान लेना अति आवश्यक है।

दुःख योग

 

चौथे स्थान का स्वामी पापग्रह से युक्त हो | 

चौथे घर मे नीच का सूर्य व मंगल हो | 

आठवें घर का स्वामी ११वें भाव मे हो | 

लग्न मे पापग्रह के बीच मे हो | 

लग्न मे शनि, आठवें स्थान पर राहु तथा छठे स्थान पर मंगल हो | 

चन्द्रमा पापग्रहों के बीच मे हो | 

लग्न का स्वामी १२वें स्थान पर, दसवे स्थान पर पापग्रह और किसी भी घर मे चन्द्रमा तथा सूर्य साथ मे बैठे

: मकान बनाने के योग

 

एक अच्छा घर बनाने की इच्छा हर व्यक्ति के जीवन की चाह होती है. व्यक्ति किसी ना किसी तरह से जोड़-तोड़ कर के घर बनाने के लिए प्रयास करता ही है. कुछ ऎसे व्यक्ति भी होते हैं जो जीवन भर प्रयास करते हैं लेकिन किन्हीं कारणो से अपना घर फिर भी नहीं बना पाते हैं. कुछ ऎसे भी होते हैं जिन्हें संपत्ति विरासत में मिलती है और वह स्वयं कुछ भी नहीं करते हैं. बहुत से अपनी मेहनत से एक से अधिक संपत्ति बनाने में कामयाब हो जाते हैं. जन्म कुंडली के ऎसे कौन से योग हैं जो मकान अथवा भूमि अर्जित करने में सहायक होते हैं, उनके बारे में आज इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेगें. 

स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है, तभी व्यक्ति घर बना पाता है. 

मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है, इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए. 

मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है. 

मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है. 

मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है. इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है. 

चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव घर का सुख देता है. 

चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर पाप व अशुभ ग्रहो का प्रभाव घर के सुख में कमी देता है और व्यक्ति अपना घर नही बना पाता है. 

चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं. एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं. 

यदि चतुर्थेश, एकादश भाव में स्थित हो तब व्यक्ति की आजीविका का संबंध भूमि से बनता है. 

कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं. 

जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं. 

चतुर्थ, अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं. 

चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है. 

जो योग जन्म कुंडली में दिखते हैं वही योग बली अवस्था में नवांश में भी मौजूद होने चाहिए. 

भूमि से संबंधित सभी योग चतुर्थांश कुंडली में भी मिलने आवश्यक हैं. 

चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश, चतुर्थ भाव/चतुर्थेश व मंगल की स्थिति का आंकलन करना चाहिए. यदि यह सब बली हैं तब व्यक्ति मकान बनाने में सफल रहता है. 

मकान अथवा भूमि से संबंधित सभी योगो का आंकलन जन्म कुंडली, नवांश कुंडली व चतुर्थांश कुंडली में भी देखा जाता है. यदि तीनों में ही बली योग हैं तब बिना किसी के रुकावटों के घर बन जाता है. जितने बली योग होगें उतना अच्छा घर और योग जितने कमजोर होते जाएंगे, घर बनाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. 

जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव आ रहा हो तब व्यक्ति घर के सुख से वंचित रह सकता है. उसका अपना घर होते भी उसमें नही रह पाएगा अथवा जीवन में एक स्थान पर टिक कर नही रह पाएगा. बहुत ज्यादा घर बदल सकता है. 

चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को जमीन से संबंधित कोर्ट-केस आदि का सामना भी करना पड़ सकता है. 

वर्तमान समय में चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बनने पर व्यक्ति बैंक से लोन लेकर या किसी अन्य स्थान से लोन लेकर घर बनाता है. 

चतुर्थ भाव का संबंध यदि दूसरे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपनी माता की ओर से भूमि लाभ होता है. 

चतुर्थ का संबंध नवम से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपने पिता से भूमि लाभ हो सकता है.

सिंहासन योग

 

दशमेश के केन्द्र, त्रिकोण, अथवा धन भाव में स्थित होने से निर्मित होता है सिंहासन योग. जन्म कुण्डली में दशम भावाधीश केन्द्र, त्रिकोण अथवा द्वितीय इनमें से किसी एक स्थान पर भी स्थित हो तो ऎसा जातक उच्च स्थान पाता है. वह राज सिंहासन पर सुशोभित होने वाला राजा समान होता है, उसकी कीर्ति सभी ओर फैलती है तथा उसकी सेना हाथी इत्यादि सदैव परिपूर्ण रहती है. 

दशमभवननाथे केन्द्रकोणे धनस्थे ।
वनिपतिबलयाने शस्तसिंहासनेषु ।।

स भवति नरनाथो विश्वविख्यात कीर्ति।
मर्दगलितकपोलै: सद् गजै: सेव्यमान: 

दशमेश यदि केन्द्र, त्रिकोण या धन भाव में से किसी में भी स्थित होने पर जातक समृद्धशाली, यशस्वी और कीर्तिवान बन सकता है. व्यक्ति को जीवन में उच्च पद की प्राप्ति होती है तथा सौभाग्य में वृद्धि पाता है. दशमेश की शुभ स्थिति होने पर कर्म स्थान बल पाता है. 

द्वितीय प्रकार का सिंहासन योग 

सातों ग्रहों के द्वितीय भाव तथा त्रिक भावों में स्थित होने से यह बनता है. द्वितीय, अष्टम, षष्ठ और व्यय में सब ग्रह हों तो व्यक्ति की कुण्डली में सिंहासन योग का निर्माण होता है. 

आकाशवासै: सकलैर्निधाननिमीलनाराह्यवसानयातै:।
वदन्ति सिंहासन नामयोगं सिंहासनं तत्र विशेन्नृपस्य।। 

ज्योतिष में सिंहासन योग का निर्माण हो तो शुभ प्रभाव जातक को अच्छी क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की क्षमता, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा देने वाला होता है. अधिकतर जातक इस योग से मिलने वाले शुभ फलों को प्राप्त करते हैं यह जातक के जीवन को प्रभावशाली स्वरुप प्रदान करने में सहायक है. इस योग के द्वारा प्रदान होने वाली विशेषताएं कुछ विशेष जातकों में ही देखने को मिलती हैं. कुंडली में इस योग का निर्माण निश्चित करने के लिए कुछ अन्य तथ्यों के विषय में विचार कर लेना भी आवश्यक है. किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं.

: अरिष्ट भंग योग

 

वर्षलग्नेश पंचवर्गी में सबसे अधिक बलवान होकर एक, चार, पांच, सात, नौवें या दसवें भाव में हों, तो अरिष्टनाशक योग होता है |

ब्रहस्पति केंद्र (१, ४, ७, १०) या त्रिकोण (५, ९) में शुभग्रहों से द्रष्ट हो व उस पर पापग्रहों की दृष्टि न हो, तो अरिष्टनिवारक योग होता है | 

चतुर्थ भाव अपने स्वामी के साथ या शुभग्रह के साथ अथवा उससे दृष्ट हो, तो भी अनिष्टनाशक योग होकर धन, दुःख और सम्मान कि वृद्धि करता है | 

सप्तमेश लग्न में ब्रहस्पति के साथ हो और क्रूरग्रह उसे न देखते हों, तो ऐसा योग अरिष्टनिवारक योग कहलाता है | 

नवम घर का स्वामी तथा दुसरे घर का स्वामी बलवान होकर लग्न में हों तथा उन पर पापग्रहों की दृष्टि न हो, तो जातक राज्य में सम्मान प्राप्त करता है | 

तीसरे, छठें, तथा ग्यारहवें स्थानों में पापग्रह एवं केन्द्र तथा त्रिकोण में शुभग्रह होते हैं, तो अरिष्टनिवारक योग बनता है | 

लग्नेश पूर्णबली होकर केन्द्र, त्रिकोण या ११, १२वें स्थान में हो, तो जातक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं | 

उच्च राशि का स्वामी बलवान होकर वर्षेश हो तथा वह तीसरे व ग्यारहवें भाग में स्थित हो, तो अरिष्टनिवारक योग होता है | 

सूर्य, ब्रहस्पति, तथा शुक्र परस्पर इत्थशाल योग करते हों, तो उस वर्ष जातक को नौकरी में प्रमोशन मिलता है | 

शुक्र, बुध और चन्द्रमा अपनी मुधा में हों, तो जातक व्यापर से लाभ उठता है | 

मंगल वर्षेश होकर मित्र की र्शी में हो और घर में पड़े ग्रह से मुत्थशिल योग करता है, तो उस वर्ष जातक को उच्च वाहन मिलता है |

अमावस्या योग

 

जब सूर्य और चन्द्रमा दोनों कुण्डली के एक ही घर में विराजित हो जावे तब इस दोष का निर्माण होता है। जैसे की आप सब जानते है की अमावस्या को चन्द्रमा किसी को दिखाई नही देता उसका प्रभाव क्षीण हो जाता है। ठीक उसी प्रकार किसी जातक की कुंडली में यह दोष बन रहा हो तो उसका चन्द्रमा प्रभावशाली नही रहता। और चन्द्रमा को ज्योतिष में कुण्डली का प्राण माना जाता है और जब चन्द्रमा ही प्रभाव हीन हो जाए तो यह किसी भी जातक के लिए कष्टकारी हो जाता है क्योंकि यही हमारे मन और मस्तिष्क का कारक ग्रह है। इसलिए अमावस्या दोष को महर्षि पराशर जी ने बहुत बुरे योगो में से एक माना है, जिसकी व्याख्या उन्होंने अपने ग्रन्थ बृहत पराशर होराशास्त्र में बड़े विस्तार से की है तथा उसके उपाय बताये है। । ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि सूर्य और चन्द्र दो भिन्न तत्व के ग्रह है सूर्य अग्नि तत्व और चन्द्र जल तत्त्व, इस प्रकार जब दोनों मिल जाते है तो वाष्प बन जाती है कुछ भी शेष नही रह जाता।

महाभाग्य योग

 

वैदिक ज्योतिष में वर्णित अधिकतर योगों का निर्माण पुरुष तथा स्त्री जातकों की कुंडलियों में एक समान नियमों से ही होता है जबकि महाभाग्य योग के लिए ये नियम पुरुष तथा स्त्री जातकों के लिए विपरीत हैं। इसका कारण यह है कि सूर्य दिन में प्रबल रहने वाला पुरुष ग्रह है तथा चन्द्रमा रात्रि में प्रबल रहने वाला एक स्त्री ग्रह है और किसी पुरुष की कुंडली में दिन के समय का जन्म होने से, लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा सबके विषम राशियों में अर्थात पुरुष राशियों में स्थित हो जाने से कुंडली में पुरुषत्व की प्रधानता बहुत बढ़ जाती है तथा ऐसी कुंडली में सूर्य भी बहुत प्रबल हो जाते हैं जिसके कारण पुरुष जातक को लाभ मिलता है। वहीं पर किसी स्त्री जातक का जन्म रात में होने से, कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों के विषम राशियों अर्थात स्त्री राशियों में होने से कुंडली में चन्द्रमा तथा स्त्री तत्व का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है जिसके कारण ऐसे स्त्री जातकों को लाभ प्राप्त होता है। 

किन्तु महाभाग्य योग का फल केवल उपर दिये गए नियमों से ही निश्चित कर लेना उचित नहीं है तथा किसी कुंडली में इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में विचार कर लेना भी अति आवश्यक है। किसी भी कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों का शुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि इन दोनों में से किसी एक ग्रह के अशुभ होने की स्थिति में महाभाग्य योग या तो कुंडली में बनेगा ही नहीं अन्यथा ऐसे महाभाग्य योग का बल बहुत क्षीण होगा जिससे जातक को अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो पायेगा जबकि इन दोनों ही ग्रहों के किसी कुंडली में अशुभ होने की स्थिति में ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बिल्कुल भी नहीं बनेगा बल्कि ऐसी स्थिति में कुंडली में कोई अशुभ योग भी बन सकता है जिसके चलते जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि कई बार किसी कुंडली में ऐसे अशुभ सूर्य तथा चन्द्रमा का संयोग होने पर भी जातक बहुत धन कमा सकता है अथवा किसी सरकारी संस्था में कोई शक्तिशाली पद भी प्राप्त कर सकता है किन्तु ऐसा जातक सामान्यतया अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाता है तथा अपने पद और शक्ति का धन कमाने के लिए दुरुपयोग करता है जिसके कारण ऐसे जातक का पद तथा धन स्थायी नहीं रह पाता तथा उसे अपने पद तथा धन से हाथ धोना पड़ सकता है तथा अपयश अथवा बदनामी का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा का शुभ होना अति आवश्यक है।

: दरिद्र योग

 

वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है जो जातक के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है। वहीं पर कुछ अन्य वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अनैतिक तथा अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाते हैं जिसके कारण इन जातकों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता तथा ऐसे जातक अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुंचाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते। 

दरिद्र योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यह योग प्रत्येक चौथी कुंडली में बनता है क्योंकि कुंडली के 11वें घर के स्वामी ग्रह की किसी कुंडली के बारह में से किन्हीं तीन विशेष घरों में स्थित होने की संभावना प्रत्येक चौथी कुंडली में रहती है। इस प्रकार संसार के प्रत्येक चौथे व्यक्ति की कुंडली में दरिद्र योग बनता है तथा संसार का हर चौथा व्यक्ति दरिद्र योग के अशुभ प्रभाव के कारण अति निर्धन अथवा अपराधी होता है। यह तथ्य वास्तविकता से पर है तथा इसीलिए दरिद्र योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इस योग का निर्माण नहीं होना चाहिए। मैने अपने अनुभव में यह पाया है कि यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह अशुभ होकर कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में बैठ जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग का निर्माण हो सकता है तथा 11वें घर के स्वामी ग्रह के कुंडली में शुभ होकर 6, 8 अथवा 12वें घर में से किसी घर में बैठ जाने पर कुंडली में दरिद्र योग का निर्माण नहीं होता बल्कि ऐसा शुभ ग्रह कुंडली के इन घरों में स्थित होकर कोई शुभ योग भी बना सकता है। कुंडली में 11वें घर के स्वामी ग्रह पर अन्य अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कुंडली में बनने वाला दरिद्र योग और भी अधिक अशुभ फलदायी हो जाता है। 

उदाहरण के लिए अशुभ बृहस्पति यदि किसी कुंडली में 11वें घर के स्वामी होकर 8वें घर में स्थित हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में कुंडली में दरिद्र योग का निर्माण हो सकता है जिसके चलते इस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक निर्धन, अति निर्धन, चोर, ठग, जेबकतरे तथा धन कमाने के लिए किसी न किसी प्रकार का धोखा करने वाले हो सकते हैं। किन्तु उपरोक्त उदाहरण में कुंडली के इसी 8वें घर में बैठा बृहस्पति यदि शुभ हो तो कुंडली में दरिद्र योग नहीं बनेगा तथा ऐसा जातक ज्योतिषी, आध्यात्मिक गुरु, आध्यात्मिक प्रवक्ता, योगाचार्य, हस्त रेखा विशषज्ञ, जादूगर, बैंक अधिकारी अथवा वित्तिय सलाहकार आदि बन सकता है। कुंडली के आठवें घर में स्थित इस प्रकार का शुभ बृहस्पति जातक को लाटरी, उत्तराधिकार, वसीयत अथवा अन्य कई प्रकार के अचानक हो जाने वाले धन लाभ भी प्रदान कर सकता है। इसलिए किसी कुंडली में दरिद्र योग के बनने या न बनने का निर्णय लेने के लिए कुंडली के 11वें घर के स्वामी ग्रह का स्वभाव तथा कुंडली के अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जान लेना अति आवश्यक है।

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